Ahoi Ashtmi Katha | अहोई अष्टमी कथा

अहोई अष्टमी एक हिंदू त्योहार है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में अपने बच्चों के कल्याण और लंबे जीवन के लिए मनाया जाता है।
इस दिन, माताएं सूर्योदय से सूर्यास्त तक निर्जला (बिना पानी के) व्रत रखती हैं। वे देवी अहोई की पूजा करती हैं, जिन्हें बच्चों की रक्षक माना जाता है। शाम को, तारे दिखने के बाद, माताएं देवी अहोई को भोजन और पानी अर्पित करती हैं और अपना व्रत खोलती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में एक लोकप्रिय त्योहार है।
अहोई अष्टमी व्रत माताओं और उनके बच्चों के बीच के अटूट बंधन का प्रतीक है। यह व्रत माताओं को अपने बच्चों के स्वास्थ्य, सुख और लंबे जीवन के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।
अहोई अष्टमी व्रत करने वाली माताओं को देवी अहोई का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह माना जाता है कि देवी अहोई बच्चों को बुरी नजर और सभी प्रकार के खतरों से बचाती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत को पूरी भक्ति और आदर के साथ मनाने के लिए निम्नलिखित विधि और विवरण होता है
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
अपने घर के मंदिर में या पूजा के स्थान पर एक चौकी पर एक साफ कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर देवी अहोई की तस्वीर या प्रतिमा रखें।
देवी अहोई को अक्षत, फूल, फल, मिठाई और आटे का दीया अर्पित करें।
देवी अहोई की आरती करें और उन्हें प्रार्थना करें कि वे आपके बच्चों को अपने आशीर्वाद से सुरक्षित रखें।
दिन भर निर्जला व्रत रखें।
शाम को, चन्द्रमाँ दिखने के बाद, देवी अहोई को भोजन और पानी अर्पित करें और अपना व्रत खोलें।
अहोई अष्टमी व्रत एक पवित्र व्रत है जो माताओं को अपने बच्चों के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस व्रत को करने से माताओं को अपने बच्चों के स्वास्थ्य, सुख और लंबे जीवन की चिंता कम होती है।
श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण
भज मन नारायण-नारायण-नारायण
भज मन नारायण-नारायण-नारायण
श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण
एक साहुकार था जिसके सात बेटे थे, सात बहुएँ तथा एक बेटी थी दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी का सांतो बहुएँ अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में मिट्टी खोद रही थी । वही स्याहू (सेई) की माँद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से सेई का बच्चा मर गया। स्याहु माता बोली कि मै तेरी कोख बाँधूँगी। तब ननद अपनी सातो भाभियो से बोली कि तुमसे से मेरे बदले कोख बधवाने से इन्कार कर दिया परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैं कोख नही बँधवाऊँगी तो सासू नाराज होगी ऐसा विचार कर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बँधवा ली। इसके बाद जब उससे जो लडका होता तो सात दिन बार मर जाता । एक दिन उसने पंडत का बुलाकर पूछा मेरी संतान सातवे दिन क्यो मर जाती है? तब पंडित ने कहा कि तुम सुरही गाय की पुजा करो काली गाय स्याहु माता की भायली है वह तेरी कोख छोड़े तब तेरा बच्चा जियेगा । इसके बाद से वह बहु प्रातः काल उठकर चुपचाप काली गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती है। गौ माता बोली कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है। सो आज देखूँगी। गौ माता खूब तडके उठी, क्या देखती है कि एक साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है। गौ माता उससे बोली मैं तेरी सेवा से प्रसन्न हूँ। इच्छानुसार जो चाहे माँग लो। तब साहूकर की बहू बोली कि स्याऊ माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बाँध रखी है सो मेरी कोख खुलवा दो। गौ माता ने कहा अच्छा, अब तो गौमाता सात समुंद्र पार अपनी भायली के पास उसको लेकर चली। रास्ते में कडी धूप थी सो वो दोनो एक पेड के नीचे गयी| थोड़ी देर में एक साँप आया ओर उसी पेड़ पर गरूड पक्षी का बच्चा था। साँप उसको डसने लगा तब साहुकार की बहू ने साँप मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चो का बचा लिया थोडी देर मे गरूड पक्षी आई जो वहा खून पडा देखकर साहूकार की बहू को चोच मारने लगी। तब साहूकारनी बोली कि मैने तेरे बच्चो को नही मारा बल्कि साँप तेरे बच्चे को डसने को आया था मैने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरूड पक्षी बोली कि माँग तू क्या माँगती है? वह बोली सात समुद्र पर स्याऊ माता के पास पहुचा दे। गरूड पंखनी ने दोनो को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याऊ माता के पास पहुचा दिया। स्याऊ माता उन्हे देखकर बोली कि बहन बहुत दिनो मे आई, फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिर में जूँ पड गई।
तब सुरही के कहने पर साहुकार की बहु ने सलाई से उनकी जुएँ निकाल दी। इस पर स्याऊ माता प्रसन्न हो बोली कि तुने मेरे सिर मे बहुत सलाई डाली है इसलिये सात बेटे और बहु होगी। वह बोली मेरे तो एक भी बेटा नही है सात बेटे कहाँ से होगे। स्याऊ माता बोली- वचन दिया, वचन से फिरूँ तो धोबी कुण्ड पर कंकरी होऊँ। जब साहुकार की बहु बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बन्द पडी है यह सुनकर स्याऊ माता बोली कि तुने मुझे बहुत ठग लिया, मे तेरी कोख खोलती तो नही परन्तु अब खोलनी पडेगी। जा तेरे घर तुझे सात बेटे और सात बहुए मिलेगी तू जाकर उजमन करियो सात अहोई बनाकर सात कढाई करियो। वह लौटकर घर आई तो देखा सात बेटे सात बहुए बैठी है वह खुश होगई। उसने सात अहोई बनाई, साज उजमन किए तथा सात कढाई की। रात्रि के समय जेठानियाँ आपस मे कहने लगी कि जल्दी जल्दी नहाकर पूजा कर लो, कही छोटी बच्चो को याद करके रोने लग। थोडी देर में उन्होने अपने बच्चो से कहा- अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि वह आज अभी तक रोई क्यो नही। बच्चो ने जाकर कहा कि चाची तो कुछ माडँ रही है खूब उजमन हो रहा है। यह सूनते ही जेठानियो दौडी-दौडी उसके घर आई और जाकर कहने लगी कि तूने कोख कैसे छुडाई? वह बोली तुमने तो कोख बधाई नही मेने कोख बँधा ली थी अब स्याऊ माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है| स्याऊ माता ने जिस प्रकार बहू की कोख खोली उसी प्रकार सब की खोले|