Shreemad Bhagvad Gita

श्रीमद भगवद गीता महाभारत के भीष्मपर्व का एक अंश है। यह एक अमर ग्रंथ है, जिसमें मानव के सारे संशयों, संकल्पों, कर्तव्यों और मुक्ति के मार्ग का समाधान है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सांख्य, कर्म, भक्ति, ज्ञान, राज, विभूति, विश्वरूप, अक्षर, गुणत्रय, पुरुषोत्तम, साधना, संन्यास, सर्वसमर्पण, मोक्षसंन्यास, मोक्षोपदेश, पुरुषोत्तमसंनिधि, पुरुषोत्तमप्राप्ति, पुरुषोत्तमसाक्षात्कार की शिक्षा दी है।

श्रीमद भगवद गीता में 18 अध्याय हैं, जिनमें 700 श्लोक हैं। प्रत्येक अध्याय में किसी न किसी महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन है। पहले छह अध्यायों में कर्म-संन्यास-साधना का प्रतिपादन है। मध्य के छह अध्यायों में संन्यास-साधना-कर्म का प्रतिपादन है। अंतिम छह अध्यायों में मोक्ष-साधना का प्रतिपादन है।

श्रीमद भगवद गीता का उद्देश्य मानव को अपने आत्मस्वरूप का बोध कराना है। इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने स्वरूप का प्रत्यक्ष दर्शन कराया है। इस प्रकार, श्रीमद भगवद गीता में साकार, निराकार, सागुण, निर्गुण, सक्रिय, निष्क्रिय, संसारी, परमात्मा, जीवात्मा, माया, प्रकृति, पुरुष, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, प्रकाश, अंधकार, सत्, रजो, तमो, सत्त्व, रजस, तमस आदि विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई है।

श्रीमद भगवद गीता में मानव को समुचित कर्म करने का उपदेश है। कर्म का महत्व है, परन्तु कर्म के फल में मोहित होने की आवश्यकता नहीं है। कर्म के फल में मोहित होने से मानव संसार में पीड़ित होता है।

आगामी अध्यायों में हम भगवद् गीता के प्रत्येक अध्याय के अर्थ और प्रासंगिकता का पता लगाएंगे, और देखेंगे कि हम इसके ज्ञान को अपने दैनिक जीवन में कैसे लागू कर सकते हैं।

यदि आप गीता, इसके दर्शन और मानवता के लिए इसके संदेश के बारे में अधिक जानने में रुचि रखते हैं, तो मैं आपको इस खोज और चिंतन की यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं। अध्याय 1 पर जाएं, जो युद्ध के दोनों पक्षों की स्थिति और भावनाओं का वर्णन करता है, और उन मुख्य विषयों और प्रश्नों को प्रस्तुत करता है जिन्हें शेष गीता में संबोधित किया जाएगा।

  1. अर्जुन विषाद योग : युद्ध के परिणाम पर शोक प्रकट करना
    Arjun Vishad Yog : Lamenting the Consequences of War
  2. सांख्य योग : विश्लेषणात्मक ज्ञान का योग
    Sankhya Yog : The Yog of Analytical Knowledge
  3. कर्मयोग : कर्म का विज्ञान
    Karm Yog : The Yog of Action
  4. ज्ञान कर्म संन्यास योग : ज्ञान का योग और कर्म का अनुशासन
    Gyan Karm Sanyas Yog : The Yog of Knowledge and the Disciplines of Action
  5. कर्म संन्यास योग : वैराग्य का योग
    Karm Sanyas Yog : The Yog of Renunciation
  6. ध्यानयोग : ध्यान का योग
    Dhyan Yog : The Yog of Meditation
  7. ज्ञान विज्ञान योग : दिव्य ज्ञान की अनुभूति द्वारा प्राप्त योग
    Gyan Vigyan Yog : Yog through the Realization of Divine Knowledge
  8. अक्षर ब्रह्म योग : अविनाशी भगवान का योग
    Akshar Brahma Yog : The Yog of the Eternal God
  9. राज विद्या योग : राज विद्या द्वारा योग
    Raj Vidya Yog : Yog through the King of Sciences
  10. विभूति योग : भगवान के अनन्त वैभवों की स्तुति द्वारा प्राप्त योग
    Vibhuti Yog : Yog through Appreciating the Infinite Opulences of God
  11. विश्वरूप दर्शन योग : भगवान के विराट रूप के दर्शन का योग
    Vishwarup Darshan Yog : Yog through Beholding the Cosmic Form of God
  12. भक्तियोग : भक्ति का विज्ञान
    Bhakti Yog : The Yog of Devotion
  13. क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग : योग द्वारा क्षेत्र और क्षेत्र के ज्ञाता के विभेद को जानना
    Kshetra Kshetragya Vibhag Yog : Yog through Distinguishing the Field and the Knower of the Field
  14. गुण त्रय विभाग योग : प्राकृतिक शक्ति के तीन गुणों द्वारा योग का ज्ञान
    Guna Traya Vibhag Yog : Yog through Understanding the Three Modes of Material Nature
  15. पुरुषोत्तम योग : सर्वोच्च दिव्य स्वरूप योग
    Purushottam Yog : The Yog of the Supreme Divine Personality
  16. देवासुर संपद विभाग योग : दैवीय और आसुरी प्रकृति में भेद द्वारा योग का ज्ञान
    Daivasur Sampad Vibhag Yog : Yog through Discerning the Divine and Demoniac Natures
  17. श्रद्धा त्रय विभाग योग : श्रद्धा के तीन विभागों को समझते हुए योग का अनुसरण करना
    Shraddha Traya Vibhag Yog : Yog through Discerning the Three Divisions of Faith
  18. मोक्ष संन्यास योग : संन्यास में पूर्णता और शरणागति के माध्यम से योग
    Moksha Sanyas Yog : Yog through the Perfection of Renunciation and Surrender