Lanka Kand - Shri Ramcharitmanas

लंका कांड रामचरितमानस का छठा अध्याय है, जो 16वीं सदी के कवि तुलसीदास द्वारा रचित रामायण का काव्यात्मक पुनर्कथन है। लंका कांड का एक महत्वपूर्ण और नाटकीय खंड है। यह मुख्य रूप से भगवान राम द्वारा राक्षस राज रावण के राज्य लंका पर हमले से पहले और उसके दौरान की घटनाओं पर केंद्रित है। रामचरितमानस का यह खंड अपने समृद्ध वर्णन, जटिल चरित्र विकास और गहन नैतिक और आध्यात्मिक पाठों के लिए जाना जाता है।

लंका कांड में, कहानी एक महत्वपूर्ण मोड़ लेती है क्योंकि भगवान राम, अपनी सेना के साथ, दुष्ट रावण के साथ अंतिम युद्ध के लिए तैयार होते हैं। कांड राम की वानरों की सेना द्वारा लंका तक पहुँचने के लिए बनाए गए रामसेतु और उसके बाद होने वाली लड़ाइयों के विशद वर्णनों से भरा हुआ है। कथा धर्म, भक्ति और बुराई पर अच्छाई की जीत के विषयों से भरी हुई है। लंका कांड के माध्यम से, तुलसीदास कुशलता से भगवान राम की वीरता और धार्मिकता का चित्रण करते हैं, जबकि अधर्म के परिणामों और अटल विश्वास की शक्ति पर जोर देते हैं। रामचरितमानस का यह खंड पाठकों को आकर्षित करता है और उन व्यक्तियों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत है जो जीवन की चुनौतियों को ईमानदारी और भक्ति के साथ पार करना चाहते हैं।

लंका कांड की कुछ प्रमुख घटनाएँ इस प्रकार हैं:

  • राम और वानर सेना ने समुद्र पार करने के लिए रामसेतु का निर्माण किया, जिसमें नल और नील ने मुख्य भूमिका निभाई। रामसेतु एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का सेतु है, जिसे आज भी सैटेलाइट इमेज में देखा जा सकता है1।
  • रावण के भाई विभीषण ने राम की शरण में आकर उनकी सहायता की। राम ने उन्हें लंका का राजा बनाने का वादा किया। विभीषण ने राम को रावण के रक्षसों और उनके अस्त्र-शस्त्रों के बारे में जानकारी दी।
  • राम और रावण के बीच घोर युद्ध हुआ, जिसमें रावण के पुत्र मेघनाद, भाई कुम्भकर्ण और अन्य अनेक राक्षस मारे गए। राम ने रावण को अपने बाणों से घायल किया, लेकिन रावण का सिर बार-बार पुनर्जीवित हो जाता था। विभीषण ने राम को बताया कि रावण का जीवन उनके नाभि में है, और उसे तोड़ने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहिए। राम ने ऐसा ही किया, और रावण का वध कर दिया।
  • राम ने विभीषण को लंका का राज्य सौंपा। सीता ने अपनी पवित्रता के लिए अग्नि परीक्षा दी, जिसमें वह सफल रही।
  • राम, लक्ष्मण, सीता और वानर सेना ने पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या की ओर प्रस्थान किया।

  1. मंगलाचरण
  2. नल-नील द्वारा पुल बाँधना, श्री रामजी द्वारा श्री रामेश्वर की स्थापना
  3. श्री रामजी का सेना सहित समुद्र पार उतरना, सुबेल पर्वत पर निवास, रावण की व्याकुलता
  4. रावण को मन्दोदरी का समझाना, रावण-प्रहस्त संवाद
  5. सुबेल पर श्री रामजी की झाँकी और चंद्रोदय वर्णन
  6. श्री रामजी के बाण से रावण के मुकुट-छत्रादि का गिरना
  7. मन्दोदरी का फिर रावण को समझाना और श्री राम की महिमा कहना
  8. अंगदजी का लंका जाना और रावण की सभा में अंगद-रावण संवाद
  9. रावण को पुनः मन्दोदरी का समझाना
  10. अंगद-राम संवाद, युद्ध की तैयारी
  11. युद्धारम्भ
  12. माल्यवान का रावण को समझाना
  13. लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, लक्ष्मणजी को शक्ति लगना
  14. हनुमानजी का सुषेण वैद्य को लाना एवं संजीवनी के लिए जाना, कालनेमि-रावण संवाद, मकरी उद्धार, कालनेमि उद्धार
  15. भरतजी के बाण से हनुमान का मूर्च्छित होना, भरत-हनुमान संवाद
  16. श्री रामजी की प्रलापलीला, हनुमानजी का लौटना, लक्ष्मणजी का उठ बैठना
  17. रावण का कुम्भकर्ण को जगाना, कुम्भकर्ण का रावण को उपदेश और विभीषण-कुम्भकर्ण संवाद
  18. कुम्भकर्ण युद्ध और उसकी परमगति
  19. मेघनाद का युद्ध, रामजी का लीला से नागपाश में बँधना
  20. मेघनाद यज्ञ विध्वंस, युद्ध और मेघनाद उद्धार
  21. रावण का युद्ध के लिए प्रस्थान और श्री रामजी का विजयरथ तथा वानर-राक्षसों का युद्ध
  22. लक्ष्मण-रावण युद्ध
  23. रावण मूर्च्छा, रावण यज्ञ विध्वंस, राम-रावण युद्ध
  24. इंद्र का श्री रामजी के लिए रथ भेजना, राम-रावण युद्ध
  25. रावण का विभीषण पर शक्ति छोड़ना, रामजी का शक्ति को अपने ऊपर लेना, विभीषण-रावण युद्ध
  26. रावण-हनुमान युद्ध, रावण का माया रचना, रामजी द्वारा माया नाश
  27. घोरयुद्ध, रावण की मूर्च्छा
  28. त्रिजटा-सीता संवाद
  29. रावण का मूर्च्छा टूटना, राम-रावण युद्ध, रावण वध, सर्वत्र जयध्वनि
  30. मन्दोदरी-विलाप, रावण की अन्त्येष्टि क्रिया
  31. विभीषण का राज्याभिषेक
  32. हनुमानजी का सीताजी को कुशल सुनाना, सीताजी का आगमन और अग्नि परीक्षा
  33. देवताओं की स्तुति, इंद्र की अमृत वर्षा
  34. विभीषण की प्रार्थना, श्री रामजी के द्वारा भरतजी की प्रेमदशा का वर्णन, शीघ्र अयोध्या पहुँचने का अनुरोध
  35. विभीषण का वस्त्राभूषण बरसाना और वानर-भालुओं का उन्हें पहनना
  36. पुष्पक विमान पर चढ़कर श्री सीता-रामजी का अवध के लिए प्रस्थान, श्री रामचरित्र की महिमा